श्री हनुमान चालीसा पाठ पीडीएफ डाउनलोड। Shri Hanuman Chalisa in Hindi PDF Download
जब भी दोस्तों हम श्री हनुमान जी का पाठ करते हैं तो हमें Shri Hanuman Chalisa in Hindi PDF की आवश्यकता होती है तो ऐसे में हम लोग श्री हनुमान चालीसा पाठ पीडीएफ डाउनलोड करने के लिए सोचते हैं
इस प्रकार से दोस्तों आज हम आपके लिए श्री हनुमान चालीसा का पाठ हिंदी में लाए हैं जिसे आप लोग पढ़ सकते हैं लेकिन जो लोग चाहते हैं कि Shri Hanuman Chalisa के PDF को डाउनलोड करना तो वह सभी लोग नीचे दिए गए डाउनलोड लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं
जब कभी भी हनुमान चालीसा का पाठ कराया जाता है तो हमें हनुमान चालीसा लिरिक्स (hanuman chalisa lyrics) याद नहीं रहता है जिस कारण से हमें पीडीएफ की सहायता लेनी पड़ती है.
ऐसे में दोस्तों हमारे भारतवर्ष में हनुमान जी के भक्त बहुत ही ज्यादा हैं और वे लगभग सभी हिंदी भाषा के बोलने वाले भक्त हैं क्योंकि हमारे भारतवर्ष में हिंदी पाठकों की संख्या बहुत ही ज्यादा है
जिस कारण से हनुमानजी के भक्त भी बहुत ही ज्यादा संख्या में हिंदी बोलने वाले हैं
इस तरीके से यहां पर आप सभी को श्री बजरंग बली भगवान पर आधारित 40 छंदों का पाठ हिंदी में उपलब्ध करवाया गया है जिसे हनुमान चालीसा पाठ कहा जाता है
Hanuman Chalisa in Hindi PDF
PDF Name | Category | Benefits of Hanuman Chalisa | Language | Author | Dohas | Chand | Download Hanuman Chalisa PDF |
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Shri Hanuman Chalisa in Hindi PDF | धार्मिक | संघर्षों से न डरना, विनम्र बनना, | हिंदी में | तुलसीदास | दो दोहे | 40 | क्लिक करें |
जय श्री हनुमान चालीसा पाठ दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
""Cleaning the mirror of my mind with the dust of the lotus feet of my revered Guru, I narrate the pure glory of Lord Rama, who bestows the four fruits of life (Dharma, Artha, Kama, and Moksha). Remembering the son of the wind (Lord Hanuman), I pray to him to enlighten me with strength, intelligence, and knowledge and to remove all the obstacles and impurities from my life."
llजय श्री हनुमान चालीसा पाठ चौपाई हिंदी में ll
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥
"Victory to Hanuman, the ocean of knowledge and virtues, Victory to the monkey chief who enlightens all the three worlds."राम दूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥2॥
"Ram's messenger, with immeasurable strength and power, Son of Anjana, known as the son of the wind."
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥
"Great warrior, powerful and strong, with a body like lightning, Destroyer of evil and companion of good intelligence."
कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुंडल कुँचित केसा॥4॥
"With golden complexion and beautiful form, Wearing forest flowers and having curly hair."
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे काँधे मूँज जनेऊ साजे॥5॥
"With the thunderbolt in his hand and the flag in his other, Wearing the sacred thread across his shoulder."
शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जगवंदन॥6॥
"The son of Shiva, Kesari Nandan, With great radiance and power, worshiped by the world."
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर॥7॥
"Wise, virtuous, and extremely clever, Eager to perform every task for Lord Rama."
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मनबसिया॥8॥
"Whoever listens to the divine story of Lord Rama, Finds great joy in their hearts and is filled with love for Rama, Lakshmana, and Sita."
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा विकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥
"Taking a subtle form, he appeared before Sita, And assuming a ferocious form, he set Lanka ablaze."
भीम रूप धरि असुर सँहारे रामचंद्र के काज सवाँरे॥10॥
"Assuming a huge and formidable form, he destroyed the demons, And accomplished all tasks for Lord Rama."
लाय सजीवन लखन जियाए श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥11॥
"Bringing the Sanjeevani herb, Hanuman revived Lakshmana to life, And Sri Raghuvir (Lord Rama) was overjoyed in his heart."
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥12॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥13॥
"You (Hanuman) are as dear to me as Lord Rama's brother Bharata."
"If one were to praise you (Hanuman) with thousands of mouths, even then one could not do justice to your glory. Lord Shri Rama himself embraces (in appreciation) those who sing your praises."
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा॥14॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥15॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा॥16॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना लंकेश्वर भये सब जग जाना॥17॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥18॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥19॥
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥
राम दुआरे तुम रखवारे होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहु को डरना॥22॥
आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हाँक तै कापै॥23॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥
संकट तै हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥26॥
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
और मनोरथ जो कोई लावै सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥
साधु संत के तुम रखवारे असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता॥31॥
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥34॥
और देवता चित्त ना धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
जो सत बार पाठ कर कोई छूटहि बंदि महा सुख होई॥38॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्ध साखी गौरीसा॥39॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥40॥
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
- आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
- जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।
- अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।
- दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।
- लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
- लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
- लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।
- पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।
- बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
- सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।
- कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
- लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
- जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
- आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।.
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